लेखनी कहानी -07-Feb-2024
ऐ ज़िन्दगी अब तुझे ढो रहा हूँ ! मुस्कराते हुए भी तो रो रहा हूँ !!
चलते चलते बहुत दूर आ गया ! ऐ साकी अब मौत का हो रहा हूँ !!
तुझे पाकर मिट गया मेरा वज़ूद ! अब कहाँ रहा मैं वो जो रहा हूँ !!
काटूँगा वही फसल वक़्त के रु ब रु ! आज जिसे मैं ज़मीं में बो रहा हूँ !!
प्रेम जितना किया था अर्जित दोस्तों ! नफरत के दौर में सब खो रहा हूँ !!
नदीश बहुत हो चुके जागने के मौसम ! यकीनन अब में चिर नींद सो रहा हूँ !!
-प्रशान्त "नदीश" कानपुर उत्तर प्रदेश
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Renu
14-Feb-2024 06:57 PM
Nice 🙂
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Mohammed urooj khan
08-Feb-2024 11:56 AM
👌🏾👌🏾👌🏾
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
08-Feb-2024 07:11 AM
बेहतरीन
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